Wednesday, April 25, 2012

ओ बी ओ चित्र से काव्य प्रतियोगिता -13

रचना को ओ बी ओ की कविता प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार मिला है:

अनायास ही छीनते, धरती माँ का प्यार,
बालक बिन कैसा लगे, माता का श्रृंगार ?

पंछी का घर छिन गया, छिनी पथिक से छाँव,
चार पेड़ गर कट गए, समझो उजड़ा गाँव.

निज पालक के हाथ ही, सदा कटा यों पेड़,
ज्यों पाने को बोटियाँ, काटी घर की भेड़.

लालच का परिणाम ये, बाढ़ तेज झकझोर.
वन-विनाश-प्रभाव-ज्यों, सिंह बना नर खोर.

झाड़ फूंक होवै कहाँ, कैसे भागे भूत,
बरगद तो अब कट गया, कहाँ रहें "हरि-दूत"?

श्रद्धा का भण्डार था, डोरा बांधे कौम,
भर हाथी का पेट भी, कटा पीपरा मौन.

झूला भूला गाँव का, भूला कजरी गीत,
कंकरीट के शहर में, पेड़ नहीं, ना मीत.

 --राकेश त्रिपाठी 'बस्तिवी'

Friday, April 20, 2012

सपना

उनको भी नया सपना दिखाया जाये,
फिर मिट्टी में ही, उसको मिलाया जाये.
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पिछले वादों का जब भी, हवाला वो दें,
यों ही प्यार से, ठेंगा दिखाया जाये.
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क्या ताकत है, जज्बाती खयालातों में!
ये 'राखी के धागों' से, बताया जाये.
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जिन लोगों ने, देखा जिंदगी में ख़्वाब,
उन्हें रातों को भी अब जगाया जाये.
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आयी है मुबारक सी, घडी घर मेरे,
इक सपना जवाँ बेटे से बुनाया जाये.
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बे सर पैर की 'सच्ची' खयाली बातें,
हमको फिर से बच्चों सा बनाया जाये.
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लाखों सपने माँ की आँखों में बसने दो,
बेटी का चलो डोला उठाया जाये.
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दादी माँ के, 'वैसे ही रक्खे' हैं सब किस्से,
दिल से चुन के, पोते को सुनाया जाये.
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तेरी शख्शियत से इक है, सपना मुझ में,
काजल सा ये आँखों में, सजाया जाये.

OBO Chitra Se Kavya Ank -12


जान बचाने से पूर्व, क्या वो पूछे जात!
किस नदिया का जल पिया, कौन जबाँ में बात?

धर्म-भाषा-जात परे, एक भारत की नीव,
माँ मै ऐसे ही करूँ, कष्ट मुक्त हर जीव.

कहीं कोसने मात्र से, मिटा जगत में क्लेश,
ह्रदय द्रवित यदि दया से, हाथ बढ़ा 'राकेश'.

केवल वो सैनिक नहीं, वह भी बेटा-बाप,
सेवा की उम्दा रखी, दैहिक-नैतिक छाप.

बदन गला कश्मीर में, जला वो राजस्थान,
कुर्बानी की गंध से, महका हिन्दुस्तान.

खाकी वर्दी तन गयी, मिला आत्म विश्वास.
पूरी होगी कौम की, हर एक सुरक्षा आस.

सैनिक जैसा बल-ह्रदय, मांगे भारत देश,
तन-मन-धन अर्पित करो, विनती में 'राकेश'.