दर्द अश्क बन के बह जाये, यही अच्छा.
मुह पे ‘ना’ कह के चला जाये, वही अच्छा.
नदी उस पार क्या है, माझी को न मालूम,
मजधार में तेरे संग डूबा जाये, यही अच्छा.
बहुत रो लिया, याद करके, बहुत तडपे हैं,
चलो कुछ ‘शेर’ लिक्खे जाये, यही अच्छा.
मौत के बहानो को सिपे-सालार क्या रोके?
रक्षा बंधन के धागे लपेटे जाये, यही अच्छा.
ठण्ड और भूख है, तन्हाई का बुरा आलम है,
माँ को ये बात न बताई जाये, यही अच्छा.
कोई हिन्दू बुलाएगा, कोई मुस्लिम बुलाएगा,
‘उसको’ दिल में सजाया जाये, यही अच्छा.
मुह पे ‘ना’ कह के चला जाये, वही अच्छा.
नदी उस पार क्या है, माझी को न मालूम,
मजधार में तेरे संग डूबा जाये, यही अच्छा.
बहुत रो लिया, याद करके, बहुत तडपे हैं,
चलो कुछ ‘शेर’ लिक्खे जाये, यही अच्छा.
मौत के बहानो को सिपे-सालार क्या रोके?
रक्षा बंधन के धागे लपेटे जाये, यही अच्छा.
ठण्ड और भूख है, तन्हाई का बुरा आलम है,
माँ को ये बात न बताई जाये, यही अच्छा.
कोई हिन्दू बुलाएगा, कोई मुस्लिम बुलाएगा,
‘उसको’ दिल में सजाया जाये, यही अच्छा.
2 comments:
well-written indeed
please keep writing.
Anup and I enjoy reading your blog
shamini
Shamini thanks a lot for word of appreciation and encouragement.
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