माँ मुझे बचपन में मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही रोटियां दिया करती थीं. इंटरवल में सारे बच्चे जल्दी जल्दी खाना ख़त्म करके खेलने चले जाते थे. और मै अपना खाना ख़त्म नहीं कर पता था. तो डब्बे में हमेशा ही कुछ न कुछ बच जाता था, और मुझे रोज़ डांट पड़ती थी. मेरी बहन भी घर आ के शिकायत करती थी कि उसे छोड़ के इंटरवल में मै खेलने भाग जाता हूँ.
एक दिन मेरी बहन मेरे साथ स्कूल नहीं गई. मै ख़ुशी ख़ुशी घर आया और माँ को बताया की मैंने आज पूरा खाना खाया है. माँ को यकीन नहीं हुआ, उनहोने डब्बा खोला और मुझे दो झापड़ रसीद कर दिए.
फिर माँ बोली की आज तुमने अपना पूरा खाना फेक दिया इसलिए मार पड़ी है. मुझे मालूम है की मै तुम्हे ज्यादा खाना देती हूँ और तुम छोड़ोगे ही. लेकिन अगर 4 रोटी में से 2 भी खा ली तो कुछ तो तुम्हारे पेट में जायेगा.
ये माँ का प्यार था.
आज भी जब मै ये बात याद करता हूँ तो मेरी आँखे भर आती हैं, और सोचता हूँ की क्या मै भी कभी किसी को इतना प्यार कर पाउँगा.
एक दिन मेरी बहन मेरे साथ स्कूल नहीं गई. मै ख़ुशी ख़ुशी घर आया और माँ को बताया की मैंने आज पूरा खाना खाया है. माँ को यकीन नहीं हुआ, उनहोने डब्बा खोला और मुझे दो झापड़ रसीद कर दिए.
फिर माँ बोली की आज तुमने अपना पूरा खाना फेक दिया इसलिए मार पड़ी है. मुझे मालूम है की मै तुम्हे ज्यादा खाना देती हूँ और तुम छोड़ोगे ही. लेकिन अगर 4 रोटी में से 2 भी खा ली तो कुछ तो तुम्हारे पेट में जायेगा.
ये माँ का प्यार था.
आज भी जब मै ये बात याद करता हूँ तो मेरी आँखे भर आती हैं, और सोचता हूँ की क्या मै भी कभी किसी को इतना प्यार कर पाउँगा.
2 comments:
Maa maa hoti hai, bacche chahe kitne bhi bahane banaye, maa ke samane sachaiye nahi chup sakti :P
Amaresh Pandey
www.padobado.com
sahi baat hai.
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