फूल की एक ख़ामोशी, को देख पाए कौन,
दिल कांटे का छलनी हो, तो सहलाए कौन.
मेरी उदासी का सबब कोई पूछता नहीं,
मै खुद से खफा हूँ, तो फिर मनाये कौन.
एकलव्य को ढूढते हुए आये कई गुरु जन,
सवाल ये है कि, नया नया अंगूठा लाये कौन.
नासमझ हैं जो ख़ुदकुशी कर बैठते हैं, मगर!
रोटी को मचलते बच्चो का मुह देख पाए कौन?
सर्द रात बितानी है बिना छत की आस के,
पन्नी का गरल घूँटने को तलब ठहराए कौन.
सज धज के खडी हूँ, नीलाम होने के लिए,
दिल कांटे का छलनी हो, तो सहलाए कौन.
मेरी उदासी का सबब कोई पूछता नहीं,
मै खुद से खफा हूँ, तो फिर मनाये कौन.
एकलव्य को ढूढते हुए आये कई गुरु जन,
सवाल ये है कि, नया नया अंगूठा लाये कौन.
नासमझ हैं जो ख़ुदकुशी कर बैठते हैं, मगर!
रोटी को मचलते बच्चो का मुह देख पाए कौन?
सर्द रात बितानी है बिना छत की आस के,
पन्नी का गरल घूँटने को तलब ठहराए कौन.
सज धज के खडी हूँ, नीलाम होने के लिए,
हमें भी सिंदूर की आस थी, ये बताये कौन?
'राम' के दरबार में सुबो-शाम गुजर जाती है.
मुफलिस के जले घर को देखने जाये कौन?
2 comments:
Ultimate tripthi ji ek baar wo bhi post kar do, jab bhi tumhaari khayaalat ko padhta hun to wohi purana tripathi yaad aata hai "Rash bhari jhakoro jhakor rasariyaa resham ki"
:) vaibhav bhai kaise ho?
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