तरक्की की राह में रोड़ा था मेरा मकां,
सड़क से बुलडोजर ले आई आंधियां
मिठाई बनाने वाले भी बेदखल हो गए,
शहद की मक्खियाँ अब जाएँगी कहाँ?
सारी जमी तुम्हारी, श्मशान तुम्हारे हैं,
आम आदमी की लाश दबाई जाये कहाँ.
तितलियाँ तो बाजार से गुलाब मागती है,
गेहू और धान के खेत लगाये जाये कहाँ.
आंगन में बसा कर, रोज दाना देते हैं,
गौर्रया अब अपने अंडे बचा पाये कहाँ?
2 comments:
बहुत खूबसूरत एवं सामयिक है।
मनोज जानी
manoj bhai, shukriya.
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