छोड़ दे शर्म, शर्म में रक्खा क्या है!
हाँ या ना के उलझनो में रक्खा क्या है.
दर्दे दिल, जा के मुह पे बोल,
बयां आइना में करने में रक्खा क्या है.
नाकामियाबी को कबूल दिल से कर,
शराब के नशे में रक्खा क्या है.
छाती चौड़ी कर, झेल दुनिया के ताने,
घर में मुह छिपा के रक्खा क्या है.
फिर से बीज डाल, पानी दे,
बंजर जमीन कोसने में रक्खा क्या है.
फूल फिजा में बिखरने के लिए है,
दरगाह की चादर बनने में रक्खा क्या है.
नहीं यकीन है, तो खुल के बोल दे,
योँ ही काशी जाने में रक्खा क्या है.
हाँ या ना के उलझनो में रक्खा क्या है.
दर्दे दिल, जा के मुह पे बोल,
बयां आइना में करने में रक्खा क्या है.
नाकामियाबी को कबूल दिल से कर,
शराब के नशे में रक्खा क्या है.
छाती चौड़ी कर, झेल दुनिया के ताने,
घर में मुह छिपा के रक्खा क्या है.
फिर से बीज डाल, पानी दे,
बंजर जमीन कोसने में रक्खा क्या है.
फूल फिजा में बिखरने के लिए है,
दरगाह की चादर बनने में रक्खा क्या है.
नहीं यकीन है, तो खुल के बोल दे,
योँ ही काशी जाने में रक्खा क्या है.
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