जो बिकता है वही लिखना पड़ता है,
शायर को भी घर चलाना पड़ता है.
गला कटवाने का बड़ा शौक है,
सबके सामने सच बयान करता है.
कब तक यकीन रकखेगी क़ौम,
पैसठ साल से वादे करता रहता है.
काफ़िर और गद्दार बुलाया जाता है,
हाकिम से जब भी सवाल करता है.
डूबा रहता है नशे मे हरदम,
हक़ीकत मे इन्सा से पाला पड़ता है.
यहाँ किसी को भी भूखा नही मिलता,
दरगाह , या फिर शिवाला जाना पड़ता है.
शिकायत पत्र से काम नही चलता,
जनता को हाथ उठना पड़ता है.
गुसलखानो के लिए फंड नही है,
शहर मे पार्को को सजाना पड़ता है.
ना कोई 'एच. आर.' है, ना कोई पैकेज,
'वेकेंड' पर भी घास काटना पड़ता है.
कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं!
कोई जब घर बनाना चाहता है.
'ए राकेश' ये किनारा है, मोतिओ-
शायर को भी घर चलाना पड़ता है.
गला कटवाने का बड़ा शौक है,
सबके सामने सच बयान करता है.
कब तक यकीन रकखेगी क़ौम,
पैसठ साल से वादे करता रहता है.
काफ़िर और गद्दार बुलाया जाता है,
हाकिम से जब भी सवाल करता है.
डूबा रहता है नशे मे हरदम,
हक़ीकत मे इन्सा से पाला पड़ता है.
यहाँ किसी को भी भूखा नही मिलता,
दरगाह , या फिर शिवाला जाना पड़ता है.
शिकायत पत्र से काम नही चलता,
जनता को हाथ उठना पड़ता है.
गुसलखानो के लिए फंड नही है,
शहर मे पार्को को सजाना पड़ता है.
ना कोई 'एच. आर.' है, ना कोई पैकेज,
'वेकेंड' पर भी घास काटना पड़ता है.
कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं!
कोई जब घर बनाना चाहता है.
'ए राकेश' ये किनारा है, मोतिओ-
के लिए डूब जाना पड़ता है.
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