हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,
अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.
पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,
जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.
मेहदी की तारीफ हम कैसे कर पाएँ,
गाव मे एक हाथ नही जिसमे छाला नही.
सावन में मिट्टी की खुशबू उनके लिए है,
जिनके घरो से होके बहता नाला नहीं.
गुटखा बेचने के लिए ट्रेनो में घूमता है,
दूध के दांत टूटे नहीं, होश संभाला नहीं.
सर झुका के भजने लिखूंगा, अगर,
सबको रोटी की फ़रियाद, टाला नहीं.
मदहोशी के कसीदो में वो कहाँ है?
जिनके आंसू में 'अम्ल' है, हाला नहीं.
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