जिंदगानी में अगर होली, नहीं तो क्या मज़ा.
गर नशे में भाँग की गोली, नहीं तो क्या मज़ा.
मानता त्यौहार हूँ, है भजन पूजन का दिन,
पर वोदका की बोतलें खोली, नहीं तो क्या मज़ा.
टेसुओं गुलमोहरो के रंग से मत रंगिये,
दो बदन में कीचड़ें घोली, नहीं तो क्या मज़ा.
छुप के गुब्बारे भरे, रंग फेकते बच्चे यहाँ!
खुल के रंगी चुनरे-चोली, नहीं तो क्या मज़ा.
रोकने से रुक गए क्योँ हाथ तेरे रंग भर,
भाभीयो ने गालियाँ तोली, नहीं तो क्या मज़ा.
मिल रहे हैं सब गले, एहसान जैसे कर रहे,
गर जबाँ पे प्यार की बोली, नहीं तो क्या मज़ा!
अपने घर में तो सभी, रंगते मगर 'राकेश' ऐ!
चौक-चौबारो में रंगोली, नहीं तो क्या मज़ा.
गर नशे में भाँग की गोली, नहीं तो क्या मज़ा.
मानता त्यौहार हूँ, है भजन पूजन का दिन,
पर वोदका की बोतलें खोली, नहीं तो क्या मज़ा.
टेसुओं गुलमोहरो के रंग से मत रंगिये,
दो बदन में कीचड़ें घोली, नहीं तो क्या मज़ा.
छुप के गुब्बारे भरे, रंग फेकते बच्चे यहाँ!
खुल के रंगी चुनरे-चोली, नहीं तो क्या मज़ा.
रोकने से रुक गए क्योँ हाथ तेरे रंग भर,
भाभीयो ने गालियाँ तोली, नहीं तो क्या मज़ा.
मिल रहे हैं सब गले, एहसान जैसे कर रहे,
गर जबाँ पे प्यार की बोली, नहीं तो क्या मज़ा!
अपने घर में तो सभी, रंगते मगर 'राकेश' ऐ!
चौक-चौबारो में रंगोली, नहीं तो क्या मज़ा.
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