Saturday, April 19, 2014

मुद्दातें गुजर गई, खलिश हुई जो कम नही,
कसक चले जो उम्र भर, वो मर्ज है, वो गम नही.

अलहदा थी जिंदगी, अलहदा से ख्वाब थे,
जो जी रहे हैं आज कल, वो हम नही वो तुम नही.

उस बार जब मिले थे तुम, उस बार जब जुदा हुए,
उस बार सी ही आँख पर, उस बार जैसी नम नही.

जुख़्तजू हज़ार थी, कुछ सही-खराब थीं,
बढ़ चले हयात मे, जो मिल गया वो कम नही.
इफ्तार होती हैं अब पंच सितारों मे,
समाजवाद रह गया है बस विचारों मे.

काट ले गये गुलशन के बेहतरीन गुलाब,
बहकाया हमे, हिंदू-मुसलमान के गुबारो मे.

कोई बूढ़ा गुजर गया है ठंड के मारे,
और चढ़ती हैं चादरें देखो मज़ारों मे. (Inspired)

वक्त ने छोड़ा नही किनारों पर भी,
बेबाक देखा था जिन्हें मझधारों मे.

जिंदगी सिमट गई है रविवारों मे,
रहते हैं तन्हा लोग अब बजारों मे.

खुली हवा मे साँस की फ़ुर्सत नही रही,
सूरज उगाता है, डूबता है, इन दिवारों मे.

फ़ना हो जाती है दुनियादारी सब,
इतनी शिद्दत है तेरे किल्कारों मे. (for Aarna)