Monday, January 09, 2012

अंधेर नगरी के हुजूर लापता: Andher Nagari Ke Huhoor Lapata

अंधेर नगरी के हुजूर लापता.
उम्मीद लापता है, रसूल लापता.

चलती हैं चप्पले दीवान-ओ-ख़ास में,
हमारे नुमाइंदो के शऊर लापता.

फासिद-ए-इल्जाम से बाइज्जत बरी हैं, (फासिद: corrupt)
उनकी शख्शियत का हर सुबूत लापता.

लाये हैं आंकड़े पिछले पांच सालोँ के,
हाकिम की निगाह से मजलूम लापता.

मुद्दा बड़ा है! छाप गया, हर अखबार में,
'आम के पेड़ से अमरुद लापता'.

इतने पहरो में भी क़त्ल किये जाते हैं,
पडोसी के समझौतो से सुकून लापता.

बच्चो के चक्कर में फनाह हो गए,
यहाँ के शायरो के उसूल लापता.

चलेगी कौम क्योँ सालार के कहे,
जमीर का पता नहीं, वजूद लापता.

दिखती नहीं रौनक, हुकूमत बदल गई,
करते थे जो तारीफ बेफिजूल लापता.

निन्यानवे के फेर में दौड़ता सुबह-शाम,
जवानी के सारे फितूर लापता.

मिलता कहाँ है 'वो', हमको नहीं पता,
बन्दों के दिल से 'मालिक', जरूर लापता.

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