Showing posts with label Romance. Show all posts
Showing posts with label Romance. Show all posts

Saturday, April 19, 2014

मुद्दातें गुजर गई, खलिश हुई जो कम नही,
कसक चले जो उम्र भर, वो मर्ज है, वो गम नही.

अलहदा थी जिंदगी, अलहदा से ख्वाब थे,
जो जी रहे हैं आज कल, वो हम नही वो तुम नही.

उस बार जब मिले थे तुम, उस बार जब जुदा हुए,
उस बार सी ही आँख पर, उस बार जैसी नम नही.

जुख़्तजू हज़ार थी, कुछ सही-खराब थीं,
बढ़ चले हयात मे, जो मिल गया वो कम नही.

Wednesday, March 21, 2012

मैखाना है

ऐसा लगता है की मेरा यों अब गुजरा जमाना है,
बेगाना रुख किये 'साकी'! यहाँ तेरा मैखाना है.

फकीरों को कहाँ यारो कभी मिलता ठिकाना है,
बना था आशियाना, आज जो बिसरा मैखाना है!

कभी अपना बना ले पर कभी बेदर्द ठुकरा दे,
सयाना जाम साकी! और आवारा मैखाना है.

तेरी हर एक हंसी पर ही चहक कर के मचल जाना.
हमेशा हुस्न-ए-जलवो पर जहाँ हारा मैखाना है.

तेरी तस्वीर के बिन ही मै पीने आज बैठा हूँ,
ख़ुशी या गम हो जुर्माना मुझे मारा मैखाना है.
    
हमेशा ही परोसे जाम हर 'शीशे' में वो भर के, 
सरापा पीने के जज्बातों को प्यारा मैखाना है.

छलावे में कभी इन्सान से पाला नहीं पड़ता,
छिपाया है हकीकत से वो एक तारा मैखाना है.

बुढ़ापे में यही बेटों ने 'बस्तीवी' दिया ताना,
जवानी में लुटाया दोस्तों पे सारा मैखाना है.

Thursday, March 01, 2012

माँ रात भर, जगती थी मेरी हर बीमारी में


बचपन का क्या बयान करू, कुछ याद नहीं रहा दुनियादारी में, 
बस ये नहीं भूला की माँ जागती थी रात भर, मेरी हर बीमारी में. 

मै भूखा हूँ, मुझको सताया है ज़माने भर ने नादान समझ कर, 
ये बातें उसको कैसे पता चल जाती है, घर की चाहर-दीवारी में. 

उसे भी मालूम है कि, घर के बाजू में मलमल की कई दूकाने है,
बेटे की हौसला अफजाई करती है सूती धोती की खरीददारी में.  

सीना तान के करता हूँ हर तूफानी हवा-पानी का सामना मै. 
मेरी माँ की दुआ की छतरी साथ चलती है मेरी रखवारी में. 

मलाल है मुझे गुडिया ही खेलने को मिला, बहनो से छोटा था, 
राखी के सौ रुपये से, घरोदे की मुक्कमल छत आई मेरी बारी में. 

मै क्यूँ अपनी माँ को इस कदर चाहता हूँ, ये बात समझ गई! 
मेरी शरीक-ए-हयात भी जब पहुँच गयी माँ की बिरादरी में. 

उधार की कील पर, दो कमरो के ताबूत जैसा था ये मकान,
माँ की चिट्ठी आई, और घर रोशन हो गया दुआ की चिंगारी में. 

Tuesday, February 14, 2012

दिल के आँगन में


दिल के आँगन में बरसो में आज चांदनी उतरी है.
उनके कदमो की चापो से राग-रागिनी छितरी है.

वही ठहाके कानो में गूंजा करते थे रह रह कर,
वही कसीदे-जुमले गुनते रहते थे हम हर पथ पर.

भूले मीतो के यादो से, रात बहुत ही अखरी है.
दिल के आँगन में………

कच्ची इमली की खातिर पत्थर खूब उछाले करना.
आमो की टहनी पे दिन भर झगडा कर झूले रहना.

यादो के गलियारो में बचपन की शरारत बिखरी हैं.
दिल के आँगन में………

गले लगाया, देर रात के चायो की भी चुस्की ली,
कक्षा के अध्यापक की भी नक़ल उतारी थोड़ी सी.

यारी की सारी बातो में यादें भूली बिसरी है.
दिल के आँगन में बरसो में आज चांदनी उतरी है.

---------------------------

कुछ लेने मेरे उन दोस्तों के लिए जो प्रतिस्पर्धा में ही जिंदगी का मज़ा गवाए जा रहे हैं:


आये, बैठे, चाय पिए, फिर धंधे का गुणगान किये,
बाते जाने कहाँ-कहाँ की, बच्चे पर अभिमान किये.

उनकी बातो में केवल अब दुनिया-दारी बिखरी है,
दिल के आँगन में फिर से काली छाया पसरी है…..

सोचा था! दिल के आँगन में……….

--------------------------

Thursday, February 02, 2012

यही अच्छा

दर्द अश्क बन के बह जाये, यही अच्छा.
मुह पे ‘ना’ कह के चला जाये, वही अच्छा.

नदी उस पार क्या है, माझी को न मालूम,
मजधार में तेरे संग डूबा जाये, यही अच्छा.

बहुत रो लिया, याद करके, बहुत तडपे हैं,
चलो कुछ ‘शेर’ लिक्खे जाये, यही अच्छा.

मौत के बहानो को सिपे-सालार क्या रोके?
रक्षा बंधन के धागे लपेटे जाये, यही अच्छा.

ठण्ड और भूख है, तन्हाई का बुरा आलम है,
माँ को ये बात न बताई जाये, यही अच्छा.

कोई हिन्दू बुलाएगा, कोई मुस्लिम बुलाएगा,
‘उसको’ दिल में सजाया जाये, यही अच्छा.

Tuesday, January 24, 2012

रक्खा क्या है!

छोड़ दे शर्म, शर्म में रक्खा क्या है!
हाँ या ना के उलझनो में रक्खा क्या है.

दर्दे दिल, जा के मुह पे बोल,
बयां आइना में करने में रक्खा क्या है.

नाकामियाबी को कबूल दिल से कर,
शराब के नशे में रक्खा क्या है.

छाती चौड़ी कर, झेल दुनिया के ताने,
घर में मुह छिपा के रक्खा क्या है.

फिर से बीज डाल, पानी दे,
बंजर जमीन कोसने में रक्खा क्या है.

फूल फिजा में बिखरने के लिए है,
दरगाह की चादर बनने में रक्खा क्या है.

नहीं यकीन है, तो खुल के बोल दे,
योँ ही काशी जाने में रक्खा क्या है.

Saturday, January 21, 2012

मुझसे प्यार करती हो

मेरे झूठे बहानो पर, कभी तुम तंज करती हो,
कभी बेवजह बातो के लिए भी रंज करती हो.


गिले शिकवे सभी नाकामियाबी के, मेरे कंधे पे-
सर रख के बयान करती हो,


तभी लगता है की तुम,
मुझसे प्यार करती हो.


फेहरिस्त अपने तकाजो की मुझपे थोप देती हो, 
खाली पर्स के लिए, फिर महगाई को दोष देती हो, 


कयास कर फिर मेरे बेफिक्र चेहरे को, मेरी आंखो में-
अपने सपने घोल देती हो.


मुझे लगता है की तुम,
मुझसे प्यार करती हो.


नये पतझड़, नयी फागुन के मौसम आगे आएंगे,
नये वादे बयां होँगे, पुरानी कसमे भुलायेंगे,


मेरे इस फलसफे को बेतुका सा नाम देकर, जब-
बेतर्क तुम फटकार देती हो.


दिल को यकीं होता है,
मुझसे तुम प्यार करती हो. 


मुझे लगता है……………………………….To you, who else.

Tuesday, January 17, 2012

चिर यौवन! : Chir Yauvan

Courtesy: Quiker
मै खिली हूँ, मेरा यौवन,
मै हसू तो हसे उपवन,
दंभ है मुझे निज गेह से,
नयन पल भर न हटता,
मेरा नायक देह से.

पर पूछ बैठा एक दिन,
"हे प्रिये!
तन की गमक, सींचता जिसको है यौवन,
क्या तोड़ सकता है समय बंधन "?

झुर्रियां, लाली न रह जाएगी अधर पर,
गेसुओं का रंग मेहदी उड़ न जायेगा?

सबको लेके जाता है समय उस हाल तक,
कैसे छोड़ेगा तुझे चिर काल तक.

सोच कर योँ बह पड़ा,
निज बाधा अवसाद,
दंभ टूटा,
रूप यौवन का क्षडिक उन्माद!

सु-विचारो से यदि-
भरा नहीं ये मस्तिष्क,
तो व्यर्थ है काया परिष्कृत.

वर्ण गोरा जो मिला तेरे ह्रदय को,
ढक सकेगी,
तभी तेरी श्याम काया.
नूर जो तू ढूंढ़ता यो फिर रहा,
है तेरे अन्दर,
कि बाहर मात्र माया.

Friday, January 13, 2012

तुम्हारी साफगोई पर: Tumhari Safgoi Par

तुम्हारी साफगोई पर जो निसार हो गए,
आज शाम को सरे वो 'शराब' हो गए.

उनके एहसान गिनो तो कुफ्र है,
जब मुह से सुना, तो हिसाब हो गए.

हिना का रंग तो फूस जैसा ही है,
तुम्हारे हाथ जब चढ़े तो हिजाब हो गए.

आज भी फ़ासी नहीं दिया उसको!
हुक्मरान ही 'कसाब' हो गए.

किसी का तजुर्बा पन्नो पे छितरा गया,
जिल्द के साथ वो किताब हो गए.

जो देखा है खुली आँखों से,
दरअसल वही ख़्वाब हो गए.

अपनी रोटी खिला दी भूखे को,
आज तुम माहताब हो गए.

Thursday, January 12, 2012

हमको भी लूटा गया: Hamko bhi loota gaya

हमको भी लूटा गया.
ये वादा भी झूठा गया.

 
"चोट तो दिल पे लगी थी,
खून पर आँख से चूता गया."

 
वो मानाने कब आये?
हम-ही से न रूठा गया.

-------------------------------------

 
कहीं दारू बंटा कहीं टीवी,
ये इलेक्शन भी छूछा गया. (छूछा: खाली, empty)


खामोश रहे, आँख पर पट्टी बांधे,
एक ऐसा हुक्मरान ढूंढा गया.

 
आंकड़े तरक्की बताते है, फिर
क्यो, हमारा गाँव सूखा गया?

---------------------------------------
 

 
नया साल मुबारक कैसे हो?
आज भी निवाला रूखा गया.


उसका हक कोई और ले गया,
दूसरों के कंधे पे न कूदा गया.

 
तुम्हारी कीमत क्या है,
जिसने सर उठाया, पूंछा गया.

----------------------------------------
 


वो भी सन्यासी हो गया,
घर चलाने का बूता गया.

 
जिसकी कोठी है  ऊंची,
मानो न मानो! वही पूजा गया.

 
"खुदा" ढूंढते रहे ता-उम्र, कि-
उनके दर अभी से एक भूखा गया.

हो सबकी पूरी आशा: Ho sabki poori ashaa

हो सबकी पूरी आशा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा
हर पेट में हो रोटी,
हर तन पर हो धोती,
चिंता-तृष्णा हो छोटी,
हो जाये शांत पिपासा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा

कुछ आम का पेड़ लगायें
कुछ दीन-बाल को पढ़ायें
हम अपना कर्त्तव्य करें,
हक बने न मात्र दिलासा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा

खादी भी उजली हो जाये,
संसद का रुके तमाशा
निर्धन को संपन्न करें,
न कि बदले परिभाषा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा

बाँट सके न भारत को -
फिर जाति धर्म या भाषा,
मनुज मनुज की तरह मिले
छटे दिलों से कुहासा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा

हो सबकी पूरी आशा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा.

मेरे दिल में आके: Mere dil me aake

मेरे दिल में आके घर बनाते रहना,
तिनको से सही, पर इसको सजाते रहना.

शाम को थका हुआ सा जब घर आऊं,
तुम यो ही आंखो से पिलाते रहना.

जब भी लगे जिंदगी से हमने क्या पाया
तुम हमको अपनी बाँहो में संभाले रखना.

कोई वादे करे, या कसमे वफ़ा की खाए
यकीन करना, पर शर्त है, मुस्काते रहना.

काबा में न मिले वो, जब काशी में ना मिले
अपनी रोटी, किसी भूखे को खिला के मिलना

जिंदगी है एक फासला: Jindagi hai ek faasalaa

जिंदगी है एक फासला मिटाते रहना,
दोस्त बन जायेंगे हाथ बढ़ाते रहना

हर सुबह मुस्काते मिल जायेंगे,
आप यो ही ख्वाबो में आते रहना.

हर-सूं तन्हाई, खुशियो में खलिश लगे,
कभी कभी अपने गाँव भी जाते रहना.

लोग पूछेंगे दुनिया को क्या दिया तुमने,
कुछ आम-अमरुद के पेड़ लगते रहना.

गद्दो में, गलीचो में नीद न आये!
माँ की लोरियां गुनगुनाते रहना.

Monday, January 09, 2012

अमावस है और चाँद पूरा है: Amaavas hai aur chand poora hai.

आये हैं, मेरा दर, याद पूरा है,
अमावस है और चाँद पूरा है.

जुल्फों से ढलकती हुई कुछ बूदें है,
ओस के बीच अंगार पूरा है.

हया से पलकें झुकी जाती है,
सवाल पूरा है, जवाब पूरा है.

बड़ी भोली शकल बनाये हैं,
क़त्ल करने का विचार पूरा है.

माथे पे एक बिंदी है बस,
दिल उजला है, श्रृंगार पूरा है.

कैसे न यकीन रक्खे उसपे,
किया हर एक वादा पूरा है.