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Saturday, March 10, 2012

माग मत अधिकार अपना

माग मत अधिकार अपना, ये अनैतिक कर्म है, 
ठेस लगती है हुकूमत का बहुत दिल नर्म है.
 
हक हमारा कुछ नहीं, पुरखे हमारे लापता,
हर तरक्की के लिए बस 'द्रष्टि उनकी' मर्म है. 

सैर को आये कभी जब समझ उपवन गाँव को, 
खेत सूखे देख कर गर्दन झुकी है, शर्म है. 

कह दिया गर 'भूख से हम मर रहे है ऐ खुदा!'
बोला गया तब सब्र और विश्वास रखना धर्म है. 

कट गए सद्दाम या लादेन, गद्दाफी सड़क पर,
तब समझ में आ गया खूं कौम का भी गर्म है!

लूट, हिंसा और लिप्सा से निकलए शेख जी,
भोर होने आ चली, काली निशा का चर्म है.

--------------- मध्य प्रदेश की सरकार की ख़ामोशी के नाम.

Friday, March 02, 2012

हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं


हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं, 
अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.

पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,
जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.

मेहदी की तारीफ हम कैसे कर पाएँ, 
गाव मे एक हाथ नही जिसमे छाला नही.

सावन में मिट्टी की खुशबू उनके लिए है,
जिनके घरो से होके बहता नाला नहीं.

गुटखा बेचने के लिए ट्रेनो में घूमता है, 
दूध के दांत टूटे नहीं, होश संभाला नहीं.

सर झुका के भजने लिखूंगा, अगर, 
सबको रोटी की फ़रियाद, टाला नहीं.

मदहोशी के कसीदो में वो कहाँ है? 
जिनके आंसू में 'अम्ल' है, हाला नहीं.

Thursday, February 16, 2012

एक हादसा इस इलेक्शन में

एक हादसा इस इलेक्शन में बहुत आम निकला,
दुधारू गाय के भेस में भेडिया गुमनाम निकला.

दाल-भात तो उसने हमारे गाँव में भी खाया था,
फिर क्योँ राजधानी जा के नमक हराम निकला.

जिसने सबसे ज्यादा चोट पहुचाई है हिन्दुओं को,
दरअसल वो किसी हिन्दू का ही गिरेबान निकला.

मुसलमान समझ कर पत्थर उठाया था जिस पर,
वो ‘कलाम’ निकला, अशफाक उल्ला खान निकला.

गोरखपुर से आये लोगो ने मचाया है बहुत उत्पात
,
शहर से एक देशभक्त मराठा का फरमान निकला.

बम्बई की मुक्कमल तस्वीर में वादियाँ ख़ूबसूरत थीं,

योँ ही नहीं फुटपाथ पर सोने कोई इंसान निकला.

Friday, February 10, 2012

शहद की मक्खियाँ


तरक्की की राह में रोड़ा था मेरा मकां,
सड़क से बुलडोजर ले आई आंधियां

मिठाई बनाने वाले भी बेदखल हो गए,
शहद की मक्खियाँ अब जाएँगी कहाँ?

सारी जमी तुम्हारी, श्मशान तुम्हारे हैं,
आम आदमी की लाश दबाई जाये कहाँ.

तितलियाँ तो बाजार से गुलाब मागती है,
गेहू और धान के खेत लगाये जाये कहाँ.

आंगन में बसा कर, रोज दाना देते हैं,  
 गौर्रया अब अपने अंडे बचा पाये कहाँ? 

Monday, February 06, 2012

फूल की ख़ामोशी

फूल की एक ख़ामोशी, को देख पाए कौन,
दिल कांटे का छलनी हो, तो सहलाए कौन.

मेरी उदासी का सबब कोई पूछता नहीं,
मै खुद से खफा हूँ, तो फिर मनाये कौन.

एकलव्य को ढूढते हुए आये कई गुरु जन,
सवाल ये है कि, नया नया अंगूठा लाये कौन.

नासमझ हैं जो ख़ुदकुशी कर बैठते हैं, मगर!
रोटी को मचलते बच्चो का मुह देख पाए कौन?

सर्द रात बितानी है बिना छत की आस के,
पन्नी का गरल घूँटने को तलब ठहराए कौन.

सज धज के खडी हूँ, नीलाम होने के लिए,
हमें भी सिंदूर की आस थी, ये बताये कौन?

'राम' के दरबार में सुबो-शाम गुजर जाती है.  
मुफलिस के जले घर को देखने जाये कौन?

Saturday, February 04, 2012

दिल चीर कर

आभार: विकिपेडिया
‘दिल चीर कर’ कमाने की इच्छा पूरी हो गई,
भगवान् बनाने के लिए, ‘एम् डी’ जरूरी हो गई.

दूध हम पीते थे जिस माँ के तनो से लिपट कर,
उसको ‘उठा’ कर के सजाना, डाक्टरी हो गई.

सलामत ‘जिगर’ चाहिए तो धरो पूरे पांच लाख,
सुश्रुत के चोले में हकीमी, अन्गुलि-मारी हो गई.

जाइए, जंचवा के निर्णय लीजिये, बच्चे का भ्रुड,
आदमी के जमीर को भी ‘एक गुप्त बीमारी’ हो गई.

पांच सौ में खून दे कर, दारू के पैसे ले गया.
आजादी की सुभाष! ‘कितनी मजदूरी’ हो गई?

Tuesday, January 31, 2012

अधनंगा मधुमास

धारावी. आभार: गूगल.
लिखें कुछ मादकता के एहसास,
अधनंगा चला आ रहा है मधुमास,

उनसे पूछो आमो के बौर की 'आस',
जो गुठलियाँ खाएं या करे उपवास.

'ब्रिजो' के नीचे रहने वालो को नसीब,
मल-मूत्र के फूले पलाश का सुहास.

ऐसा लगता है कि जवानी फूट रही,
उसको माघ में भी नहीं था लिबाज.

हूक सी उठाती है, कोयल की आवाज,
माँ की छाती से जब दूध की नहीं आस.

'भींचकर' आलिंगन होगा, चुम्बन होगा,
आया है चुनाव इस बार फागुन के पास.    

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For my non-hindi speaking friends, an attempt to simplify the meaning: 

What does spring bring?

1. Lets write some feelings of wine
   Spring is coming half naked. 

2. They will tell the expectation of blossomed mangos,
   who either eat core of mango or do fast.

3. People who are living beneath bridges can get,
    fresh breeze of toilet. 

4. they because adult It seems,
 but they neither had cloths in winter. 

5.  There is a wince after a song of merle,
   When child do not have any expectation of milk from mother. 

6. You will receive a great amount of hug and kisses,
    Election is coming this time around spring. 

Sunday, January 29, 2012

‘हुस्न के जलवो से फिर’

‘हुस्न के जलवो से फिर’ उसकी कलम मजबूर है,
साभार: गूगल 
‘घर सजाने’ के लिए लिखता है, जो मशहूर है.

धर्म ग्रंथो और बुतो को, बेफिक्र नंगा कर दिया,
‘ब्रिटेन की नागरिकता’ पाने का यही दस्तूर है.

झूम जाती महफिले, की भाव ऐसे भर दिए,
शायरी लिखता गजब है, यदि ‘बियर’, ‘तंदूर’ है.

‘अलख की आग’ लगा, सत्ता समूची उलट दी,
इस बार मिया ‘ग़ालिब’ को ‘पद्म श्री’ मंजूर है.

‘मटेरियल’ के होड़ में, बस्तिया गन्दी छान दी,
एहतियातन, ‘बिसलरी’ से धो के खाते अंगूर है.

शान में चोखे लिखे, बजते हैं ‘छब्बीस जनवरी’ पर,
उससे पूछो ‘हश्र क्या’ जिसका मिटा सिन्दूर है.

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मै अगर ये कहू की ये रचना ‘अदम’ साहब को श्रद्धांजलि के लिए है, तो छोटे मुह बड़ी बात होगी.
इसलिए मै ये कहोंगा की उनको एकलव्य की तरह दिल में मूरत बना कर पूजते हुए कुछ लिख दिया.

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For my friends who are not comfortable with Hindi, an attempt to convey the meaning:

1. 'because of beauty' his pen is compelled,
    'to decorate his house' he write, what is famous.

2. He tainted the image of religious books and god statues
     its easier way to get citizenship of England.

3. His poems create a sensation in gatherings,
    He write beautifully when Bear and chickens are served.

4. He changed the leadership with his poems
    he must be nominated to 'padm shri' award this year.

5. In search of material, he visited lots of slums,
    As a precaution, he eat grapes washed in 'Bisleri'

6. Written patriotic song, used to run on republic day,
    But what about widows, of those solders.

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In memory of great Hindi poet 'Adam Gondavi' who just died on
18th of dec 2011. He was common man's poet and lived like that.



Thursday, January 26, 2012

चला हो, दिया पूरा हो!


अनिहार बहुत बढ़ गईल, चला हो, दिया पूरा हो!  (अनिहार: अंधेरा)

बर्थ-डे मनय, स्कूल खरतिन बजट नाही,
महगाई कुल छोरि लियेय, कौड़ी बचत नाही.

काव कही हम रोज़गार के कहानिया.
हमरे इहा खुलल बाए, जाति के दुकानिया.

खाए बिना मरै जमूरा हो, चला कि दिया पूरा हो!

घोड़ावा कि नाई भागत, सगरा जमनवा,
ज्ञान-विज्ञान पढ़य, सगरा जमनवा,

हम घुरचालि रही, कुववा म अपने,
दुरगुड निहार रही, गौवा म अपने.

हमार प्रांत बन गईल घूरा हो, चला! अब तो दिया पूरा हो!!

कवन कम बाय, हियाँ के ज़मीनिया,
कहें छोड़ी छोड़ी भागी, आपन पुरनिया,

यहीं जमेक चाही सबके पौवा,
'रालेगाओं' बन सकै हमारौ गौवा,

यहीं संग्राम करो पूरा हो, चिन्गी जलाओ, दिया पूरा हो!

किनकर्तव्या रहे चली ना कमवा,
घर मा बैठी कय,  बदले ना गउवा.

आवा, तनी तनी करा हो जतनवा,
कौनो फल मिलत नाहि, बिना सीचे तनवा.

मसीहा के राह देखब छोड़ा हो!
आपन खाब,अपुनै, करक परे पूरा हो, खुशी से दिया पूरा हो.

एक किरण बहुत जरूरी हो गई!


आभार: विकिपेडिया

रात बड़ी देर से है, एक किरण बहुत जरूरी हो गई!
कब तक सर कटाएँ, बगावत जनता की मजबूरी हो गई.

ये कलम नीली नहीं चलती, इसकी स्याही सिन्दूरी हो गई. 
असलहो की दरकार किसे है? हमारी जबान ही छूरी हो गई.

इलेक्शन आने वाले हैं, सरकार की नीद पूरी हो गई.
फिर वोट चाहिए, कौम से मिलने की मंजूरी हो गई.

गाँव में जा के देखे कौन! ऑफिस में खाना-पूरी हो गई.
कोई सम्बन्ध ही नहीं, दोनो भारत में बड़ी दूरी हो गई.

हक अपना पहचान लिया, जिन्दा लाश से जम्हूरी हो गई. 
कई मशाल दिख रही है, चिंगारी की जरूरत पूरी हो गई.

सीने में जलती है तो आग, पेट में - जी हुजूरी हो गई,
अगर चूलें नहीं हिली, तो बात फिर अधूरी हो गई.    

 (चूलें: नीव) ।  (जम्हूरी: जनता)

आजादी का गाना


पेट में नहीं दाना, तन पे नहीं बाना ,
आओ गाएँ 'लता जी' का गाना. 

"मौन व्रत" तोड़ेंगे आज, लाल किले पर,
'भाषण' किसने लिखा? ये तो बताना!

एक दिन का 'ड्राई डे' निकाल ले,
फिर क्या! खाना, खिलाना, मौज मनाना.

देश भक्तो को ढूंढ के लाना,
फिर 'पद्म भूषण' से सजाना.

जो करे ईमान की बाते,
उसे पड़ेगा भूख हड़ताल पर जाना. ("अन्ना जी" को समर्पित)

नया-नया गाल कहाँ से लायें,
'गांधी' बाबा! ये तुम ही बताना!

प्रार्थना पत्रो से काम नहीं चलता,
जनता को पड़ेगा हाथ उठाना.

Wednesday, January 25, 2012

क्या पकिस्तान हमारा भाई है?

वादे करते जाता है,
मुर्गा-रोटी खाता है,
ट्रेने भी चलवाता है. 

पर एक भाई दूसरे के 
हमेशा काम आता है.
इसलिए मुझको है शक!
वो भाई नहीं है.
उसका कुछ और है हक.

रिश्ते की बात करके जाते ही,
कुछ आतिशबाजी करता है. 
अब गावो की बारातो में भी,
तो इंसान जख्मी होता हैं. 

आजादी से है ये विवाद.
क्या पकिस्तान हमारा भाई है,
या है वो हमारा दामाद!

जश्न मानते रहो आजादी है

जश्न मानते रहो आजादी है
किसे-किसे खाना दे, पानी दे,
बड़ी आबादी है
Courtesy : Wikimedia

कैसे बचाएं अपना वजूद,
हर रोड पर, हर ऑफिस में,
चौराहे या जेब में 'गाँधी' है!

ठण्ड और धूप में उगाया-
ऊख जला बैठा, सच है!
किसान बड़ा फसादी है.

खाली दीवारें है कमरे की,
सुकून वाली, "सोफ्ट कॉपी" में है,
बाकी सब में बर्बादी है.

ऐ झंडा फहराने वालो!
गिरेबान में झाको,
"मरा अभी-अभी गद्दफ्फी है".

Thursday, January 19, 2012

दंगा: Danga

Courtesy: rebelyouth-magazine.blogspot
आहो से भर उठा वितान,
मीलो में था ये श्मशान.
जहर की बेले, गई थी बोई,
आज दिखाती ये अंजाम,

माँ की गोदे हुयी है सूनी,
सूनी पड़ी है दुल्हन मांग,
'रजिया' का यदि मरा है शौहर,
'राधा' के बच्चे गुमनाम.

नेताओ के इरादो में तुम,
कहाँ ढूँढते हो ईमान,
वोटो की इस राजनीति ने,
इन्हें बना रखा है गुलाम.

फतहो या फिर नारो से क्या,
अलग हो गई है पहचान!
मिटटी की खातिर, मिटटी की,
जान ले रहा है नादान.

भेस बदल कर आते है सब,
ले-ले 'गाँधी-जी' का नाम.
सब ने ही है स्वांग रचा.
'मसीहाओ' से सावधान!

वो कहते 'मेरे है अल्ला',
ये कहते 'मेरे है राम'.
लेकिन लहू तो 'इन्सां' का है,
हिन्दू कहो या मुसलमान.

दिल में ढूंढ़. वही पायेगा,
भूखे को देकर के दान.
गला काट के कैसे मानव!,
ढूंढ़ रहा है तू भगवान्.

कुछ भी सिद्ध नहीं होगा,
ले कर के निर्बल की जान,
झगड़े टंटो से क्या 'मूरख',
हो जाते हैं प्रश्न निधान?

मिल जुल कर करना होगा,
पड़े प्रगति के काम तमाम.
पहले से ही भारत पिछड़ा,
और करो मत तुम बदनाम.

यही बनाओ राम राज्य अब,
यहीं तरक्की के अभियान,
आजादी तुमको है पूरी,
'आज बचा लो ये गुलफाम'.

Sunday, January 15, 2012

रेलवे पटरी पर संडास है: Railway patari par

रेलवे पटरी पर संडास है,
और जिंदगी झकास है.

रेल में बम फूटा, गोलियां चली,
पर यहाँ की 'लाइफ' बिंदास है.

हाथ में मोबाइल, कान में हेडफ़ोन,
समझता अपने को ख़ास है.

घडी घडी स्कोर देखते हैं,
सचिन की सेंचुरी पास है.

हर जगह बहू सताई जा रही है,
हर 'सीरियल' में सास है.

मरना, खपना, या 'एलियन',
मीडिया का च्वनप्राश है!

खुद खाए या बच्चो को खिलाये,
'बत्तीस रुपये की घास है.'

इस साल भी बारिश अच्छी करने का,
मौसम विभाग का प्रयास है.

जेल में रहे या संसद में,
दोनो ही अपना आवास है!

Saturday, January 14, 2012

मै भी लड़ना चाहती हूँ! mai bhi ladala chahti hoon

मै भी लड़ना चाहती हूँ! मुझे लड़ने दो!

हार का मै स्वाद चखना चाहती हूँ.
जीत का अभ्यास करना चाहती हूँ.

प्रेयसी बन बन के हो गई हूँ  बोर!

मै नए किरदार बनना चाहती हूँ. 
मै भी जिम्मेदार बनना चाहती हूँ.

सीता-गीता मेरे अब नाम मत रखो!


धनुष का मै तीर बनाना चाहती हूँ,
गरल पीकर रूद्र बनना चाहती हूँ.

अपने पास ही रखो हमदर्दी अपनी!


खड़े होकर सफ़र करना चाहती हूँ,
'बसो' का मै ड्राइवर बनना चाहती हूँ.

मै भी लड़ना चाहती हूँ.


मेरी राह के हर एक दीपक बुझा दो!

बिजली के खम्भे बनना चाहती हूँ. 
स्वयं जलकर भस्म बनना चाहती हूँ.

नर्स या फिर शिक्षिका नहीं केवल! 


कोयले की खान खोदना चाहती हूँ,
ओलम्पिक से पदक लाना चाहती हूँ.

बस! अब और नहीं चाहिए आरक्षण! 


मै तो बस एक हक चाहती हूँ,
भ्रूड में मै नहीं मरना चाहती हूँ.

लड़की हूँ तो क्या हुआ! मै भी लड़ना चाहती हूँ.

Thursday, January 12, 2012

लोग एअरपोर्ट जा रहे थे: Log Airport Ja rahe the

लोग एअरपोर्ट जा रहे थे और वो घास काट रही थी,
गोधुली बेला थी, "वीकेंड" की शाम थी.

जीर्ण शीर्ण सी धोती से सर को ढकी थी 
शेष जो था तन पे लिपटाये थी.
सोचने लगा कि घर कहाँ है उसका?

दूर तक कोई  झोपड़ी न थी.


तभी एक आदम सा कद दिखा,
साथ में एक कुत्ते की परछाई भी थी.
कभी मालिक आगे तो कभी आदमी आगे,
लगा कि साया व्यक्ति पर हावी थी.

दो घडी में एक कोलाहल सा हुआ,
लगा की कुछ कहासुनी हुई.

उस औरत के हाथ में "बर्गर" था-
और आदमी कि चिल्लाये ही जा रहा -
"इस औरत ने कुत्ते की रोटी चोरी की."

पर वो ढिठाई से एकदम अड़ी रही, 
एक हाथ में "आधा बर्गर का टुकड़ा",
एक हाथ में हसिया ली हुई.

इसी तमाशे में मेरी "कैब" आ गई, 
और मै भी एअरपोर्ट के लिए निकल पड़ा.

हमेशा सजा रहता है: Hamesha saja rahta hai

हमेशा सजा रहता है, अँधेरा दूर रहता है,
ये दिल काफ़िर का है इसमे खुदा नहीं रहता है.

मंदिर या मस्जिद जाने का कहाँ मौका है,
बहुत सुबह ही रोज़ी रोटी को निकलता है

उसे तो तृप्त करना उसे प्यासे से मतलब है,
कहाँ गंगा को चिंता है कि मिन्नत कौन करता है

ना माथे पे है टीका सर पे ना टोपी लगता है,
वो गिरते को उठता है, खुद को इंसान कहता है

तरक्की में बहुत से मकबरे या "पार्क" बनते हैं,
प्लान "हैण्ड पम्पो" का फाइलों में ही सड़ता है.

फलाना "ब्रिज" और फलाना "रोड" बनती है,
बनाने वाला का घर फिर वही फुटपाथ बनता है.

ना इसके पर हैं, ना हि कोई दाँत, हमारा "राष्ट्र" -
इसको कभी "पी-एम्" कभी "लोकपाल" कहता है.

झंझावात विचारो का: Jhanjhavaat Vicharo ka

झंझावात विचारो का, उद्विग्न हो उठा मेरा मन,
जब देखा आज सड़क पर सोते, ठंडी में वो नंगा तन.

बिखरी है समृधि-सरसता, दिखता है बस चैन अमन,
तेरा चेहरा भूल गए हैं टी-वी के ये विज्ञापन.

नई-नई परिभाषाएं हैं, नई दृष्टि है, नए वचन.
बत्तीस रुपये से ऊपर वाले को कहते "कॉमन मैन".

थके हुए हैं, भूखे हैं, हताश भी है जन-गन-मन
सत्ता के मद में खादी को, कौन दिखायेगा दर्पण.

देखें कितने दिन चलते हैं, नारे वादे और दमन.
काठ की हाड़ी रोक सकेगी, कितने दिन तक परिवर्तन

जो बिकता है: Jo Bikata Hai

जो बिकता है वही लिखना पड़ता है,
शायर को भी घर चलाना पड़ता है.


गला कटवाने का बड़ा शौक है,
सबके सामने सच बयान करता है.

कब तक यकीन रकखेगी क़ौम,
पैसठ साल से वादे करता रहता है.


काफ़िर और गद्दार बुलाया जाता है,
हाकिम से जब भी सवाल करता है.

डूबा रहता है नशे मे हरदम,
हक़ीकत मे इन्सा से पाला पड़ता है.


यहाँ किसी को भी भूखा नही मिलता,
दरगाह , या फिर शिवाला जाना पड़ता है.

शिकायत पत्र से काम नही चलता,
जनता को हाथ उठना पड़ता है.


गुसलखानो के लिए फंड नही है,
शहर मे पार्को को सजाना पड़ता है.

ना कोई 'एच. आर.' है, ना कोई पैकेज,
'वेकेंड' पर भी घास काटना पड़ता है.


कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं!
कोई जब घर बनाना चाहता है.


'ए राकेश' ये किनारा है, मोतिओ-
के लिए डूब जाना पड़ता है.