Tuesday, February 14, 2012

दिल के आँगन में


दिल के आँगन में बरसो में आज चांदनी उतरी है.
उनके कदमो की चापो से राग-रागिनी छितरी है.

वही ठहाके कानो में गूंजा करते थे रह रह कर,
वही कसीदे-जुमले गुनते रहते थे हम हर पथ पर.

भूले मीतो के यादो से, रात बहुत ही अखरी है.
दिल के आँगन में………

कच्ची इमली की खातिर पत्थर खूब उछाले करना.
आमो की टहनी पे दिन भर झगडा कर झूले रहना.

यादो के गलियारो में बचपन की शरारत बिखरी हैं.
दिल के आँगन में………

गले लगाया, देर रात के चायो की भी चुस्की ली,
कक्षा के अध्यापक की भी नक़ल उतारी थोड़ी सी.

यारी की सारी बातो में यादें भूली बिसरी है.
दिल के आँगन में बरसो में आज चांदनी उतरी है.

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कुछ लेने मेरे उन दोस्तों के लिए जो प्रतिस्पर्धा में ही जिंदगी का मज़ा गवाए जा रहे हैं:


आये, बैठे, चाय पिए, फिर धंधे का गुणगान किये,
बाते जाने कहाँ-कहाँ की, बच्चे पर अभिमान किये.

उनकी बातो में केवल अब दुनिया-दारी बिखरी है,
दिल के आँगन में फिर से काली छाया पसरी है…..

सोचा था! दिल के आँगन में……….

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