Friday, February 10, 2012

शहद की मक्खियाँ


तरक्की की राह में रोड़ा था मेरा मकां,
सड़क से बुलडोजर ले आई आंधियां

मिठाई बनाने वाले भी बेदखल हो गए,
शहद की मक्खियाँ अब जाएँगी कहाँ?

सारी जमी तुम्हारी, श्मशान तुम्हारे हैं,
आम आदमी की लाश दबाई जाये कहाँ.

तितलियाँ तो बाजार से गुलाब मागती है,
गेहू और धान के खेत लगाये जाये कहाँ.

आंगन में बसा कर, रोज दाना देते हैं,  
 गौर्रया अब अपने अंडे बचा पाये कहाँ? 

2 comments:

मनोज जानी said...

बहुत खूबसूरत एवं सामयिक है।

मनोज जानी

Rakesh said...

manoj bhai, shukriya.