Monday, February 20, 2012

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बेस्ट की बस के एक कोने में लटके टी वी में,
अचानक से हलचल हुई.
अष्टावक्र की स्थिति में खड़े होने के बावजूद,
लोगो की उत्सुकता जगी.
बहुत सारे रंगीन विज्ञापनो के बीच,
चार्ली चापलिन की एक ब्लाक एंड व्हाइट मूवी.

अब यात्री चार रुपये में मनोरंजन कर तो देते नहीं है.
ऐसे आंकड़े आये होँगे की, संत्रस्त परस्थितियों में-
इंसान ज्यादा चौकन्ना रहता है.
'अड्वरटाइजमेंट दिखाओ कालेज का!'
कौन सा बाप चाहेगा कि बच्चा ऐसी भीड़ बने?

इन विज्ञापनो ने बस में भी नहीं पीछा छोड़ा,
धक्को का नैसर्गिक सुख भी तोडा.
जबकि इनकी पहले से ही पकेजिंग कर दी गई है,
सारी या एक्सक्यूज मी के अर्थहीन शब्दो से.
आपके कष्ट को और मंगलमय और उद्देश्य पूर्ण-
बनाया गया है 'प्रचार' डाल कर.
अब प्रचार के बिना तो 'इंसान' को पता चलेगा नहीं कि,
"कन्या भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध है",
इत्यादि!

तड़के ही कई मेसेज मोबाइल पर रहते हैं,
अब तो अदात हो गई है.
पहले उठा के देखता था,
किसी जान-पहचान वाले का तो नहीं.
अब पता चल गया है कि नए रिश्तेदार कैसे बने.
मेरे अकाउंट के दस हज़ार रुपयो का भेद खुल चुका है.
और कोई बैंकर उनकी फ़िराक में है.
पर्सनल लोन या क्रेडिट कार्ड की आड़ में.

खाने की टेबल पर ऐसे ही ढूंढा,
की कुछ मिल जाये जिसे टी वी, रेडियो, अखबार,
इन्टरनेट, मोबाइल,
रोड, ट्रेन या बेस्ट की बस में,
ना देखा हो.
पर यहाँ तक की मुस्कराहट, और झल्लाहट,
कुछ घर का बना लगता ही नहीं.
बच्चा भी नयी मासूमियत के अदाए,
किसी दूध में मिलाने वाले पाउडर या-
चाकलेट के 'ऐड' से सीख रहा है.

मुझे बताया जा रहा है की मै अपनी बहन को,
होली-दिवाली क्या गिफ्ट दूँ.
अगर ये पहनू तो 'अमिताभ बच्चन' लगूंगा,
अगर वो खाऊंगा तो "युवराज सिंह".
अब जब रिसर्च होगी तब पता चलेगा कि,
"कपडे" आपके शहर के किसी दर्जी ने बनाये थे,
और दवा का क्या असर होता है आपकी
छाती पर, स्वाद पर, और सोच पर!
पर आप "जियो जी भर के"

कभी कभी नहीं समझता की,
बिना यूरिया के गेहू-धान कहाँ पैदा किया गया है.
किस ओर्गानिक फार्म में!
फिर सोचता हूँ,
रेलवे पटरी के किनारे वाले खेत से तो नहीं ही आया होगा.
पर "ये सोच" भी शायद उधार की है.
इसे पाल्यूशन फ्री "पेंट" से सदियो तक,
अंदरूनी सोच को ढकने के काबिल बनाया गया है,
यह भी मुझे बताया गया है!

वैसे तो सब जानकारियाँ मुफ्त है गूगल पर,
ज्ञान के लिए एक आभासी गुरु बैठा है वहा.
साइड के कालम में 'ऐड वर्ड' का छूरा लिए.
चुपके से जो आपके अवचेतन मन के अंगूठे  को
बिना आपसे दक्षिणा मागे काट लेगा.
फिर दांत निपोर के कहेगा: 'नो फ्री मील्स'.

"डिंग डांग: आप मेरे ब्लाग पर आ रहे प्रचार पर क्लिक करें!
आप जीत सकते हैं एक.........
आफर सिर्फ आज के लिए, नियम शर्ते लागू"
पता चला आपको क्या!
ऐसे ही चुपके से आपकी चपातियो और पूजाओ में-
विज्ञापन की सोच घुसा दी जाती है,
बिना "डिंग डांग" किये!

चुनाव में तो पहले से ही प्रचार वैद्य था.
'हमारे' दूरदर्शी नेता!
१२१ करोड़ के घर तो जा नहीं सकते.
गए भी तो क्या मुह ले के जाएँ,
पांच-पांच साल करके ६५ साल होने को आये है.
जुगत लगानी होगी.

जैसे की सिगरेट-दारू की कम्पनी बहादुरी का इनाम देकर,
अपने काली करतूतो को ढकना चाहती है.
ऋषि मुनि को भी विज्ञापन की जरुरत है.
उनके लिए परोक्ष रणनीति है.
अब भगवान् को चढाने के लिए 'मिनरल वाटर' में भरा-
गंगा का पानी हरिद्वार से लिया है या कानपूर से.
फर्क तो पड़ता है न भाई!

इस मोह-माया से निकालने के लिए,
तपस्या करने को हिमालय पर भी जगह नहीं है,
वहां भी शायद कोई बुद्धिमान देवता,
अपना बैनर लगा दे, किसी उर्वशी-मेनका को ले कर.
स्वर्ग जाइये, साथ में एक इंट्री फ्री-कॉम्बो आफर.
कम से कम तपस्या के वर्ष,
अगर इस साल व्रत शुरू करते हैं तो!

विज्ञापन का कोकीन मिला है हर चीज़ में.
सब पर एक खुमार सा छाया है,
अब वो माफिया सिर्फ टी वी के भरोसे नहीं है,
नए नए माध्यम तलाश कर रहा है,
आपके खून में घुल जाने के लिए,
लत लगा कर असहाय बनाने के लिए.

एडियाँ घिसने पर आपको भी मजबूर कर दिया है,
देखिये न, आपका दिल हमेशा 'मोर' मागता है!!
गौर से सुनिए.


3 comments:

Shamini said...

well said indeed...

Rakesh said...

Thanks shamini

Rakesh said...

जागो ग्राहक जागो. अब बोर्नविटा वाले बच्चे जादा लम्बे हो जाते हैं, अमिताभ बच्चन या अक्षय कुमार ने तो शायद नहीं पिया था. अब क्या भारतीय जनता केस करगी "Revital" पर की उसे खाने से युवराज को कन्सर हुआ है? हम सब लोग 'कारपोरेट क्राइम' के शिकार हो रहे हैं. वेदान्त ने पूरे उडीसा को खोद डाला. और कह रहे हिं की २० लाख बच्चो की मिड डे मेल्स देते हैं, What a bull shit!!! I know my friends personally who are suffered from vedanta and their mines. अलीन भाई ऐसा 'Cartle' है की हम और आप समझ भी नहीं पाएंगे, बस यही सोचेंगे की इन्ही से देश की प्रदाती हो रही है, शाइनिंग इण्डिया इन्ही के कारन है.
अब बेचारे पैसा क्या चैरिटी के लिए लगते हैं क्या? की बच्चो को मिड डे मील मिले? पैसा लगते हैं पैसा बनाने के लिए, अपनी सेल १० गुना करने के लिए. अब माल्या साहब NDTV गुड times चलते हैं, तो उसपे शिक्षा की बाते थोड़े ही बताते हैं, उसपे तो वो अपने दारू का ऐड ही करते हैं.