Saturday, March 03, 2012

दुनियादारी के दस हाइकू

फूटा ठीकरा
शेख बच निकला
तू था मुहरा


ढूंढ़ बकरा
शनैः रेत लो गला
दे चारा हरा


बेजुबाँ खरा
हक मागने लगा
तो दोष भरा


अना दोहरी
नश्तर सी चुभन
दगा अखरी!


यहाँ खतरा
ईश्वर हुआ अंधा
इन्सां बहरा


यार बिसरा
अब यहाँ क्या धरा
चलो जियरा


छटा कुहरा
छद्म बंधन मुक्त
पिया मदिरा


समा ठहरा
इंद्रधनुषी दुनिया
नशा गहरा


नेत्र बदरा
लगा झरझराने
रक्त बिखरा


नशा उतरा
आई घर की याद
बुझा चेहरा

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