Saturday, March 10, 2012

माग मत अधिकार अपना

माग मत अधिकार अपना, ये अनैतिक कर्म है, 
ठेस लगती है हुकूमत का बहुत दिल नर्म है.
 
हक हमारा कुछ नहीं, पुरखे हमारे लापता,
हर तरक्की के लिए बस 'द्रष्टि उनकी' मर्म है. 

सैर को आये कभी जब समझ उपवन गाँव को, 
खेत सूखे देख कर गर्दन झुकी है, शर्म है. 

कह दिया गर 'भूख से हम मर रहे है ऐ खुदा!'
बोला गया तब सब्र और विश्वास रखना धर्म है. 

कट गए सद्दाम या लादेन, गद्दाफी सड़क पर,
तब समझ में आ गया खूं कौम का भी गर्म है!

लूट, हिंसा और लिप्सा से निकलए शेख जी,
भोर होने आ चली, काली निशा का चर्म है.

--------------- मध्य प्रदेश की सरकार की ख़ामोशी के नाम.

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