Thursday, January 12, 2012

हमेशा सजा रहता है: Hamesha saja rahta hai

हमेशा सजा रहता है, अँधेरा दूर रहता है,
ये दिल काफ़िर का है इसमे खुदा नहीं रहता है.

मंदिर या मस्जिद जाने का कहाँ मौका है,
बहुत सुबह ही रोज़ी रोटी को निकलता है

उसे तो तृप्त करना उसे प्यासे से मतलब है,
कहाँ गंगा को चिंता है कि मिन्नत कौन करता है

ना माथे पे है टीका सर पे ना टोपी लगता है,
वो गिरते को उठता है, खुद को इंसान कहता है

तरक्की में बहुत से मकबरे या "पार्क" बनते हैं,
प्लान "हैण्ड पम्पो" का फाइलों में ही सड़ता है.

फलाना "ब्रिज" और फलाना "रोड" बनती है,
बनाने वाला का घर फिर वही फुटपाथ बनता है.

ना इसके पर हैं, ना हि कोई दाँत, हमारा "राष्ट्र" -
इसको कभी "पी-एम्" कभी "लोकपाल" कहता है.

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