झंझावात विचारो का, उद्विग्न हो उठा मेरा मन,
जब देखा आज सड़क पर सोते, ठंडी में वो नंगा तन.
बिखरी है समृधि-सरसता, दिखता है बस चैन अमन,
तेरा चेहरा भूल गए हैं टी-वी के ये विज्ञापन.
नई-नई परिभाषाएं हैं, नई दृष्टि है, नए वचन.
बत्तीस रुपये से ऊपर वाले को कहते "कॉमन मैन".
थके हुए हैं, भूखे हैं, हताश भी है जन-गन-मन
सत्ता के मद में खादी को, कौन दिखायेगा दर्पण.
देखें कितने दिन चलते हैं, नारे वादे और दमन.
काठ की हाड़ी रोक सकेगी, कितने दिन तक परिवर्तन
जब देखा आज सड़क पर सोते, ठंडी में वो नंगा तन.
बिखरी है समृधि-सरसता, दिखता है बस चैन अमन,
तेरा चेहरा भूल गए हैं टी-वी के ये विज्ञापन.
नई-नई परिभाषाएं हैं, नई दृष्टि है, नए वचन.
बत्तीस रुपये से ऊपर वाले को कहते "कॉमन मैन".
थके हुए हैं, भूखे हैं, हताश भी है जन-गन-मन
सत्ता के मद में खादी को, कौन दिखायेगा दर्पण.
देखें कितने दिन चलते हैं, नारे वादे और दमन.
काठ की हाड़ी रोक सकेगी, कितने दिन तक परिवर्तन
2 comments:
Jhakjhor dene wale bichar hai...
Amaresh,
www.padobado.com
bahut bahut dhanyavaad, amresh bhai!
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