Sunday, January 29, 2012

‘हुस्न के जलवो से फिर’

‘हुस्न के जलवो से फिर’ उसकी कलम मजबूर है,
साभार: गूगल 
‘घर सजाने’ के लिए लिखता है, जो मशहूर है.

धर्म ग्रंथो और बुतो को, बेफिक्र नंगा कर दिया,
‘ब्रिटेन की नागरिकता’ पाने का यही दस्तूर है.

झूम जाती महफिले, की भाव ऐसे भर दिए,
शायरी लिखता गजब है, यदि ‘बियर’, ‘तंदूर’ है.

‘अलख की आग’ लगा, सत्ता समूची उलट दी,
इस बार मिया ‘ग़ालिब’ को ‘पद्म श्री’ मंजूर है.

‘मटेरियल’ के होड़ में, बस्तिया गन्दी छान दी,
एहतियातन, ‘बिसलरी’ से धो के खाते अंगूर है.

शान में चोखे लिखे, बजते हैं ‘छब्बीस जनवरी’ पर,
उससे पूछो ‘हश्र क्या’ जिसका मिटा सिन्दूर है.

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मै अगर ये कहू की ये रचना ‘अदम’ साहब को श्रद्धांजलि के लिए है, तो छोटे मुह बड़ी बात होगी.
इसलिए मै ये कहोंगा की उनको एकलव्य की तरह दिल में मूरत बना कर पूजते हुए कुछ लिख दिया.

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For my friends who are not comfortable with Hindi, an attempt to convey the meaning:

1. 'because of beauty' his pen is compelled,
    'to decorate his house' he write, what is famous.

2. He tainted the image of religious books and god statues
     its easier way to get citizenship of England.

3. His poems create a sensation in gatherings,
    He write beautifully when Bear and chickens are served.

4. He changed the leadership with his poems
    he must be nominated to 'padm shri' award this year.

5. In search of material, he visited lots of slums,
    As a precaution, he eat grapes washed in 'Bisleri'

6. Written patriotic song, used to run on republic day,
    But what about widows, of those solders.

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In memory of great Hindi poet 'Adam Gondavi' who just died on
18th of dec 2011. He was common man's poet and lived like that.



1 comment:

Rakesh said...

खफा मै, 'एम् ऍफ़ हुसैन' और 'रुश्दी' साहब दोनों से हूँ. पर और भी ऐसे बहुत हैं, जिनके लिए गरीबी, बदहाली, अमन, मुहब्बत पर लिखने के लिए कुछ नहीं है. और मीडिया की तरह 'sensation' लिखने में आगे आ जाते हैं. अब ब्रिटिश का तो काम ही है जो आपस में लादे उसे और बढ़ावा दो. जो अपने 'culture' को गली दे, उसे और सराहो. मै व्यक्तिगत रूप से 'रुश्दी' साहब को एक 'mediocre talent' ही मानुगा. बुकर न तो नोबेल है और न ही पुलित्जर. और हिंदुस्तान में 'RK Naraynan ' से ले के रबीन्द्र बाबु या फिर सदाबहार प्रेम चंद जैसे लेखक हुए हैं जिन्हें इनाम देना सूरज को दिया दिखाना है. पर कभी 'sensation' नग्नता का सहारा नहीं लिया. ये पोस्ट-'modernism' ने एक तो ढंग का साहित्य लिखना बंद कर दिया और जिसने लिखा भी वो बुकर के चक्कर में. माना 'स्वर्गीय हुसैन' साहब बहुत बड़े चित्रकार थे, किन्तु भक्ति तो रसखान के भी दिल में जागी थी कृष्ण के लिए. और ऊपर से जहाँ पर धार्मिक भावनाए पहले से ही इतनी हिंसक है, ऐसी आग पर हाथ सेकना कहाँ तक वाजिब है.